आध्यात्मिकता व भौतिकता,
एक व्यक्ति व एक वस्तु।
वस्तु व्यक्ति के लिए, नकि
व्यक्ति वस्तु के लिए।
व्यक्ति, व्यक्ति से प्रेम करे,
और वस्तु का करे उपयोग।
तो समाज होगा स्वस्थ।
पर व्यक्ति व्यक्ति का उपयोग करता है और वस्तु से प्रेम करता है। वस्तु यानि पदार्थ, जिसमें से भौतिकता की गंध आती है।
व्यक्ति व्यक्ति न होकर वस्तु (पदार्थ) बन गया। पैसा सिर चढ़ कर बोल रहा है।
और इधर आध्यात्मिकता में कोई प्रदर्शन नहीं बल्कि दर्शन का महत्व
धर्म का लक्ष्य मोक्ष यानि मुक्ति,पदार्थ तो कदापि नहीं।
जीवन का लक्ष्य, तत्व को जानने की इच्छा (जिज्ञासा) तत्व को परमात्मा कहना पूर्णविराम नहीं। तत्व को और जानने की प्यास के चलते ही जीवन है।
आज इंसान परमात्मा से धन ही मांगता है यानि धर्म का लक्ष्य पदार्थ, मोक्ष नहीं।
एक समय था, जब लोग व्यापार में धर्म को आगे रखते थे, अब धर्म व्यापार का रूप ले रहा है। चारों तरफ वाहवाही और दिखावे की प्रतियोगिता है। समाज में कोई इस समस्या को जड़ से उखाड़ सकता है, तो वो है "आध्यात्मिकता" जो समाज को जोड़ती है, और भौतिकता इंसान को समाज से तोड़ती है।
संकलन
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