Thursday, 18 May 2017

अन्तर्यामी (intermittent

अंतर्यामी ।
                     पिछले भाग में हमने पढ़ा कि परमात्मा हमारे भीतर ही रहता है। यदि यह सही है तो उसको हमारे पल पल की खबर रहती होगी कि हम क्या कर रहे हैं । फिर तो हमारे अंदर के अच्छे बुरे विचार उनसे छिप नहीं सकते होंगे  । जो हम किसी अन्य से छुपा कर दूसरों का बुरा सोचते हैं, नीचा दिखाने और बर्बाद करने की योजना बनाते हैं । क्योंकि प्रभु तो हमारे अंदर ही रहता है तो उससे ये सब छुपाएँ कैसे ?
               हम धार्मिक स्थानों में जाकर प्रभु को अपने मन की बात सुनाने की कोशिश करते हैं परन्तु वह प्रभु पहले से ही सब कुछ जानता है। गुरु ग्रन्थ साहिब में पवित्र सन्देश है कि:-
राखा एकु हमारा सुआमी ।।
सगल घटा का अंतरजामी ।।
       उस अंतर्यामी प्रभु से कुछ भी नहीं छुपाया जा सकता क्योंकि वह प्रभु बिना बोले  ही हमारे मन की अवस्था तथा जरूरतों को जानता है । इसी कारण से हमें गुरबाणी सुनों,पढो, विचार करना तथा अपने जीवन की विचारधारा गुरु अनुसार बनाना चाहिये ।  तो क्यों ना हम अपनी गलतियों को सुधारें । उस परमात्मा को प्रेम तथा सच्चाई से ही पाया जा सकता है ।
बिनु बकने बिनु कहन कहावन अंतरजामी जानै ।। 1228/GGGS

Amrender Singh

No comments:

Post a Comment