नरसंहार कर,नदियों बहाया जाता है खून ।
क्रोध अग्नि में, ऊबलाया जाता है खून ।
क्रोध अग्नि में,घूंट कर पीया जाता है खून ।
हत्या अभिलाषा में,प्यासा हो जाता है खून ।
स्वाभिमान जगाने, गरमाया जाता है खून ।
मेहनत बल पर पसीना बन जाता है खून ।
कर्मकांड अंधेरे मे बलि चढ जाता है खून ।
असहाय दुख भोग, आँसू बहाता है खून ।
शोषित श्रमिकों का, चूसाया जाता है खून ।
उत्साह की कमी कर,ठंडाया जाता है खून ।
बदले का इच्छुक ,सिर चढ जाता है खून।
मेहनत के बल ,पसीने कमाई खाता है खून ।
गौरव-सा अनुभव, जोश चढाता है खून ।
अतयंत भयभीत हो,सूख-सा जाता है खून
खूनदान दो अपना,,डबल हो जाता है खून।
'गंभीर' कलम से स्याही भी बनता है खून।
Gambhir Says
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