Tuesday, 2 May 2017

आसा की वार (भूमिका)

अर्मत वेले (सूबह के समय) "आसा दी वार" का किर्तन होता है। इस बाणी में गुरू नानक देव जी ने 'अकाल_पूरुख' (प्रमात्मा) और उसके 'नाम' की महिमा की है और गुरू के महत्व पर प्रकाश डाला है। इस बाणी में निम्न लिखे गुरू उपदेश/ सिधांत का वर्णन है:-
१) सतगुरू  अपने उपदेशों द्वारा साधारण मनुष्य को महान तथा धर्मी बना देता है।
२) गुरू के द्वारा ही अकाल पुरुख से सांझ बनती है।
३) अकाल पुरूख का जन्म (प्रकाश) अपने आप से हुआ है।
४) सारी सिर्शटी का कर्ता-धर्ता वही है तथा सिर्शटी का हर काम उसी की रज़ा (हुकूम) से होता है।
५) प्रभू का सिमरन करने वाले लोग प्रभू जैसे हो जाते हैं, फिर वह जन्म-मरन के चक्कर मे नहीं पड़ते।
६) प्रभू का न्याय सच्चा है, वे जीवो़ को किये हुए कर्मों के आधार पर फैंसला करता है।
७) अच्छे कर्मों वालों को अपने साथ तथा बूरे कर्मों वाले को योग्य सज़ा देता है।
८) प्रभू की सज़ी कुदरत, बेअंत त़ाकत तथा आश्चर्यजनक कौतक देख मन में झनझनाहट, हैरानगी,प्रेम तथा श्रर्द्धा के भाव उत्पन्न होते हैं।
९) अंहकार त्याग कर प्रभू की समझ गुरू के उपदेशों पर चल कर हो सकती है।
१०) दुनिया से मिली प्रशंसा से अभिमान नहीं करना चाहिए।
११) प्रभू ही मनुष्य का असल सहारा है, देवी-देवताओं की उसके आगे कोई मूल्य नहीं है।
१२) अंहकार, बूरे विचार, बूरे कर्म, संसारिक पदार्थों का मोह, तथा विकार धर्म की राह में रूकावट हैं।
१३) तीरथ स्नान, मुर्ति पूजा, जप-तप,रास लीला, व दिखावे के पाठ, दिखावे के पुन्य-दान, धार्मिक भेष जैसे कर्म-कांड प्रभू प्राप्ती में कोई सहायता नहीं करते, बल्कि दूर ले जाते हैं।
१३) सेवा, संतोष, निमर्ता, सच्चाई, दया, ऊँचा-आचरण, जरूरतमंद की मदद, विकवरों से बचना आदि गुण सच्चे धर्मी मनुष्य में होने चाहिए।
१४) एक धार्मिक व्यक्ति को हर समय प्रभू को याद रखना, गुरमुखों की संगत, प्रभु पर विश्वास, नेक कमाई और उसकी रज़ा मे रहना जरूरी है।
१५) मनुष्य को स्त्री से कोई भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।
१६)  प्रभू के भगत को मिट्ठा बोलना अध्यात्मक गुणों से भरपूर, सादा जीवन तथा उसके हुकूम पर किंतु-परंतु नहीं करना चाहिए।

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