##दो_लंमी_नदरि_निहालीऐ
किसी मनुष्य की देखने वाली तो दो आंखे होती हैं, पर देखती एक-सा हैं।
इनमें भी दो तरह की नज़र है, एक दूर की, दूसरी नज़दीक की।
#सरसरी_नज़र
दूर की नज़र वाली किसी बाहर की रोशनी, बेशक वो सूरज की हो या चांद की, बिजली की हो या आग की,ये सब दूर की यानि बाहर की रोशनी पर निर्भर करता है।
#महीन_नज़र
नज़दीक की नज़र, इस आंख की नज़र अलग है, बेशक इसको देखने के लिए मुख्य रूप में, किसी न किसी रूप में बाहर की रोशनी की जरूरत पड़ती है, पर यह आंख किसी वस्तु को सरसरी नज़र से नहीं देखती। इसकी हर दृष्टि अर्थपूर्ण होती है। इसको कोई चीज़ निरर्थक नहीं दिखती, इसीलिए यह उसके बाहरी रूप को छोड़कर, उसके अंदर के रूप में झांकती है तथा उसके अपने वस्तु वेश को बदल कर उसको अर्थ रूप में पलट देती है। इस नज़र को स्वभाविक ही हम "सूक्षम दृष्टि" भी कह सकते हैं। यह तो था #भौतिक_पहलू।
दूसरा पहलू है #आध्यात्मिक,
#लंमी_नदरि (आत्मिक दृष्टि)
ज़रा और गहराई में देखें तो हमें एक तीसरी आंख को देखने के लिए किसी बाहरी रोशनी की जरूरत नहीं पड़ती। यह अपने आप में ही एक रोशनी है तथा यह रोशनी फुट पड़े तो उसकी उसकी ऊपर बताई दोनों की दृष्टि समाप्त हो जाती हैं। इसकी अपनी रोशनी मनुष्य के धुर के अंदर से चमकती है तथा देखा-देखी वस्तु के असल रूप को उखाड़ कर उसको स्वै-स्वरूप में प्रत्यक्ष कर देती हैं । इसकी #आत्मिक_दृष्टि या #ज्योति कहा जाता है। Cont....
#संकलन एवं #अनुवाद #GambhirSays
किसी मनुष्य की देखने वाली तो दो आंखे होती हैं, पर देखती एक-सा हैं।
इनमें भी दो तरह की नज़र है, एक दूर की, दूसरी नज़दीक की।
#सरसरी_नज़र
दूर की नज़र वाली किसी बाहर की रोशनी, बेशक वो सूरज की हो या चांद की, बिजली की हो या आग की,ये सब दूर की यानि बाहर की रोशनी पर निर्भर करता है।
#महीन_नज़र
नज़दीक की नज़र, इस आंख की नज़र अलग है, बेशक इसको देखने के लिए मुख्य रूप में, किसी न किसी रूप में बाहर की रोशनी की जरूरत पड़ती है, पर यह आंख किसी वस्तु को सरसरी नज़र से नहीं देखती। इसकी हर दृष्टि अर्थपूर्ण होती है। इसको कोई चीज़ निरर्थक नहीं दिखती, इसीलिए यह उसके बाहरी रूप को छोड़कर, उसके अंदर के रूप में झांकती है तथा उसके अपने वस्तु वेश को बदल कर उसको अर्थ रूप में पलट देती है। इस नज़र को स्वभाविक ही हम "सूक्षम दृष्टि" भी कह सकते हैं। यह तो था #भौतिक_पहलू।
दूसरा पहलू है #आध्यात्मिक,
#लंमी_नदरि (आत्मिक दृष्टि)
ज़रा और गहराई में देखें तो हमें एक तीसरी आंख को देखने के लिए किसी बाहरी रोशनी की जरूरत नहीं पड़ती। यह अपने आप में ही एक रोशनी है तथा यह रोशनी फुट पड़े तो उसकी उसकी ऊपर बताई दोनों की दृष्टि समाप्त हो जाती हैं। इसकी अपनी रोशनी मनुष्य के धुर के अंदर से चमकती है तथा देखा-देखी वस्तु के असल रूप को उखाड़ कर उसको स्वै-स्वरूप में प्रत्यक्ष कर देती हैं । इसकी #आत्मिक_दृष्टि या #ज्योति कहा जाता है। Cont....
#संकलन एवं #अनुवाद #GambhirSays
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