मन_की_मैल_और_तीर्थ_स्नान
जैसे हमने समय, दिन, महूर्त आदि को गुरबाणी अनुसार समझने की कोशिश की । वैसे ही तीर्थ स्थान, तीर्थ स्नान भी धार्मिक कर्मकाण्ड का एक विभन्न अंग है । और आमतौर पर हमारी यह धारणा बनी हुई है कि इन स्थानों की यात्रा तथा इन स्थानों के नजदीक बहने वाली नदियों या सरोवरों में स्नान करने से मन की मैल यानि अवगुण, बुराइयां, बुरी आदतें, झूठ बोलना, चुगली करना, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि सब साफ़ हो जाती है ।
वैसे मैल का अभिप्राय शरीर के ऊपर धूल-मिट्टी, धुंए आदि प्रदूषण का जम जाना, जिसे साबुन के द्वारा स्नान करने पर बहुत आसानी से साफ़ किया जाता है । पर इससे हमारे अंदर के पाप , विकार का धुलना एक प्रश्न को उठाता है कि यह कैसे हो सकता है ? चलो ! गुरु ग्रन्थ साहिब जी की विचार धारा का अध्यन करते हैं ।
हम पहले विचार कर चुके हैं कि प्रभु हमारे अंदर ही निवास करता है । तथा लाभ, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि जो विकार हैं, वे हमारे मन की मैल हैं । हम इन अवगुणों के कारण जीवन में आए दुख सहन नही कर पाते, तथा इनसे बचने के लिए किसी के कहने पर अज्ञानता वश ये सोच बैठते हैं कि जैसे शरीर की ऊपरी मैल स्नान से उतरती है,वैसे ही बुराइयों की मैल भी धार्मिक स्थानों की नदियों और सरोवरों के पानी से धूल जाएगी ।
गुरबाणी हमें विज्ञान की तरह यह समझाती है कि चाहे जितने तीर्थ स्थानों पर स्नान कर लो,परन्तु मन की मैल इससे उतरने वाली नहीं है ।
"मनि मैले सभु किछु मैला,
तनि धोतै मनु हछा न होइ ।।"
"देही धोई न उतरै मैल ।।
मन की मैल को कैसे उतारना है, इससे पहले यह समझना बहुत जरुरी है कि मन की मेल पैदा कैसे होती है । यह हमारे आस पास के माहौल से जैसे, जब बच्चा जन्म लेता है। वह विकारों, कपट व अवगुण से रहित होता है । हम स्वंय उस के सामने झूठ बोलकर, उसकी गलत संगत से दोस्ती को अनदेखा कर पैदा करवाते हैं। लेकिन हम इस मैल को गुरु की शिक्षा और प्रभु की याद से धो सकते हैं । इन संस्कारों के पैदा होने से जिंदगी भर अवगुण नज़र नहीं आते हैं ।
"मनमुख मैल न उतरै, जिचरु गुर सबदि न करै पिआरु ।।
जब मन में दया,धर्म,संतोष,प्रेम आदि गुण पैदा हो जाएंगे तो विकारों की मैल अपने आप उत्तर जाएगी और मन छोटे बच्चे जैसा निर्मल तथा पवित्र हो जाएगा ।
Amrender Singh
Email. sikhikalaajkal@gmail.com
Gurmeet Singh Gambhir
Monday, 29 May 2017
मन की मैल और तीर्थ स्थान
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