#नाम_का_जाप ।
पिछले अध्यायों में हमें गुरु ग्रन्थ साहिब जी की शिक्षा और उसके अध्यन से प्रभु का स्वरूप, उसकी कृपा और उसके अंतर्यामी होने की जानकारी मिली । आज के विषय के मुताबिक़ प्रभु के साथ जुड़ने के तरीके #जाप" के बारे में जानेगे ।
क्या इसके लिये समाधि लगाने, गुफा में बैठ कर तपस्या करने की आवश्यकता है ? या कोई ओर ढंग है, प्रभु से जुड़ने का ?
गुर जी की विचारधारा हमें इन सभी कर्मों से छुटकारा दिलाती है । गुरु साहिब तो हमें एक दूसरे से प्रेम करने, इस प्रभु के नाम व गुणों को याद रखने की शिक्षा देते हैं । इसलिये हमें गुरु की शिक्षाओं को मन में धारण कर इस प्रभु को सदैव याद रखने की बात कही हैं । प्रभु का गुणगान से तातपर्य उसकी बनाई सृष्टि और उनके नियमों से है, जिसकी वजह से हमारा जीवन व्यापन ठीक ठाक से चल रहा है। चाहे वो प्रकर्ति के सूरज, चाँद, सितारे हों या पेड़, पहाड़, नदियां हों या प्रभु द्वारा दिया हुआ हमारा जीवन, माँ बाप, बच्चे हों ।
हम संसार से अपने तथा परिवार की सुख शांति के लिये धन सम्पदा, सोना चांदी, जमीन जयदाद एकत्र करते हैं वो तो कभी भी किसी और की हो सकती है, परन्तु प्रभु का नाम तथा उसके गुणगान का व्यख्यान जो हम एक दूसरे को बांटते हैं जो हमें गुरु जी की शिक्षा से मिला है, कोई छीन नहीं सकता । इससे हमारे मन में संतोष, सुख व परम् ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
1, प्रभु के नाम तथा उसके गुणों को याद रखने से काम, क्रोध, लोभ, मोह, व अहंकार जैसे विकार दूर होते हैं ।
2, जो लोग प्रभु का नाम स्मरण करते है वो अपनी मेहनत में सफल होते हैं । उनके जीवन उज्ज्वल रहते हैं, और उन के साथ संग करने वाले भी मुक्त हो जाते हैं ।
3, प्रभु के नाम को जपना से भावार्थ हैं कि उसको सदैव याद रखना, गुरु की शिक्षा द्वारा प्रभु के गुणों को कीर्तन से गायन करना ।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम नाम के जप का अर्थ गुरु की बाणी का पाठ गिनतियों में, माला लेकर करते हैं । इससे हमारा ध्यान गिनने तक ही सिमित रहता है । गुरु जी ने हमें नाम को गिनती से नहीं, बल्कि अपने रोम रोम में बसाने की शिक्षा दी है । जिससे हमारा आचरण अच्छा तथा विकारों की मेल दूर होती है ।
गुरु की शिक्षा हमे अपना काम करते हुए, उठते बैठते, लेटते जागते, हर समय उस प्रभु की याद करें जैसे हम अपने परिवार, कारोबार, धन पदार्थों को याद रखते हैं ।
प्रभु को याद करने के लिये किसी स्थान, दिन, महूर्त, त्यौहार, विशेष की आवश्यकता नहीं है । यदि हम प्रभु के नाम जपने के लिये गिनती, समय महूर्त में ही उलझे रहेंगे तो अपने अंदर प्रेम, अच्छा आचरण , विकारों से दुरी नहीं नहीं बना पाएंगे । क्योंकि हमारा जो सिमित समय (जीवन) है वो लगातार समाप्त हो रहा है ।
Amrender Singh
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