समय से हमारा अटूट सम्बंध है क्योंकि हम समय से बंधे हुए हैं। इसी के अनुसार ही हम यह जीवन जी रहे हैं । प्राचीन काल से ही सूर्य, चन्द्रमा, तारों को समय के साथ जोड़ कर देखा जाता है । इसी व्यवस्था के अधीन पल, क्षण, सैकेंड, मिनिट, घण्टे, दिन-रात, सप्ताह, महीनें, ऋतू,तथा वर्ष आदि का निर्माण हुआ है ।
हम पहले विचार कर चुके हैं कि गुरबाणी को समझ कर अपने मन को समझाना है । तो क्या गुरबाणी को विचारने, प्रभु को आराधने को कोई समय निश्चित है ? सुबह, सायं, दोपहर या रात । गुरबाणी की विचार धारा समझाती है कि
जे वेला वखतु वीचारिए, ता कितु वेला भगित होइ ।।
यदि समय का विचार करेंगे तो तो फिर किस समय प्रभु की भक्ति करेंगे ।
वेला वखत सभि सुहाइआ।। जितु सचा मेरे मनि भाइआ ।।
वो वक्त, समय सुहावना है, जिस समय सच्चा प्रभु हमारे मन को अच्छा लगने लगे।
गुरबाणी की पवित्र विचारधारा हर उस सैकेंड, मिनट, घण्टे, दिन,महीनें, महूर्त को अच्छा, भाग्यशाली व सुहावना कहती है, जब मन प्रभु की याद में जुड़ जाये ।
गुरु ग्रन्थ साहिब में बहुत से शब्द हैं जो हमें दिनों, ग्रह, शगुन-अपशुगन, राशि, नश्त्र आदि के चंगुल से निकलने की प्रेरणा देती है । यदि परमात्मा से ध्यान लगाया जाए, जो हमारे अंदर ही विराजमान है, तो हर पल सुंदर है । हमें गुरबाणी की विचारधारा को अपने जीवन का आधार बनाना है । ज्योतिष, राशि , सक्रांत, अमावस्या, पूर्णिमा, पंचांग, शगुन कुंडली आदि की सिख जगत में कोई स्थान नहीं है। गुरु को मानने वाले इन सब से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है ।
Friday, 27 May 2016
समय
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