क्योकि सारे ब्राह्मण्ड की अभी हमें जानकारी नहीं है, हाँ, इस संसार के सभी जीव, पेड़, पंछी,नदी, झील, फूल, सूर्य, चाँद आदि की रचना प्रभु ने की है। जिनमें मनुष्य जाति प्रमुख है । इस जाति में जन्म लेने की प्रकिर्या, सभी को दो हाथ, पाँव, आँखें, कान दिए गए हैं । इसी के साथ प्रभु ने सूर्य तथा चाँद की रौशनी, दिन रात का समय, हवा पानी की शीतलता, आग की गर्मी और यहां तक की चलने, देखने, सुनने, बोलने का तरीका भी एक ही प्रकार का है ।
बादल की वर्षा, सूर्य की किरणें, ऋतुएँ सभी गावों, शहरों, पहाड़ों सभी पर एक समान पड़ती हैं ।
पर क्यों हम मनुष्य जाति को को अलग अलग वर्ग, उंच नीच, बड़ा छोटा, धर्म कर्म, श्वेत अश्वेत में बाँटा गया है ?
चलो, आज फिर से गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखी बाणी और गुरु इतिहास में से दी गई शिक्षाओं की व्याख्या करके इन सवालों का उत्तर ढूंढते हैं ।
गुरु साहिबानों ने प्रभु की इच्छा के मुताबिक़ इन अंतर और भेदभाव का खण्डन अपने जीवन के बहुत से उदाहरण तथा बाणी की शिक्षाओं से किया है । जैसे
#जाति का गरबु न करि मूरख गवारा ।।
इसु गरब ते चलहि बहुतु विकारा ।।
#एक नूर ते सभु जगु उपजिआ,
कउन भले को मंदे ।।
#सा जाति सा पति है जेहे करम कमाइ ।।
#जाति का गरबु न करिअहू कोई ।।
#बिन नावै सभ नीच जाति है,
बिस्टा का कीड़ा होइ ।।
गुरु जी ने लंगर प्रथा और अमृत पान की की शुरुवात की ताकि कोई भी किसी जाति, धर्म, समाज, देश प्रदेश, अमीर गरीब आदमी इन सब मतभेद, भेदभाव, छुआछूत को भूल कर, गुरु की शिक्षा को अपनाकर, अमृत पान की रस्म स्वंय इच्छा से अपनाकर, एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन (लंगर) कर सकता है । ताकि वो अपना वर्ग सामान्य कर सके।
No comments:
Post a Comment