Tuesday, 24 May 2016

प्रभु की याद

गुरु ग्रन्थ साहिब जी के अध्यन से हमें एक परमात्मा के बारे में जानकारी मिलती है । जिसे गुरु की शिक्षा द्वारा ही पाया जा सकता है । उसका  गुण है कि वो अंतर्यामी है और हमारे अंदर ही निवास करता है । वह प्रभु अपने आदेश और कृपा से इस सारे संसार का संचालन कर रहा है । उस प्रभु के नाम को मन में बसा कर, गुरु की शिक्षा से, गुरमुख बना जा सकता है। जो मनुष्य प्रभु के हुकम को समझ लेते हैं, उन्हें किसी प्रकार के दुख नहीं होता । ऐसे व्यक्ति सदैव आनंद में रहते हैं ।
                  सारे संसार की प्रकर्ति जैसे चाँद तारे, सूर्य, दिन रात, जीवन  मृत्यु, सुख दुख, पेड़ पोधे, पहाड़ नदियां, सभी उस परमात्मा के नियम रूपी हुकम से बंधे हुए हैं । गुरबाणी हमें उस प्रभु को सदा अपने मन में याद रखने रखने की शिक्षा देती है  । उठते,बैठते, चलते, हर समय प्रभु का प्रेम मन में होना चाहिए । और जब प्रेम पैदा होगा तो प्रभु का याद स्वंय ही आने लगेगी ।
                   परन्तु ऐसा देखा गया है कि हमारे लिये प्रभु से प्रेम अपनी जरूरतों से शुरू तथा जरूरतें खत्म होने के साथ ही समाप्त हो जाता है । जिनमें पुत्र प्राप्ति तथा धन पदार्थों का सुख मुख्य है । ऐसे व्यक्ति जो प्रभु को भुलाते हैं या स्वार्थ हित याद करते हैं और वो लोग जो जादु टोना, झाड़ फूंक, ग्रह को शांत करने की विधि, विभन्न तरह की पत्थर वाली अंगूठी पहनना, झूठे बाबा पाखण्डियों की शरण में जाना, मृत व्यक्ति की समाधि को पूजना, श्राद्ध करना, पेड़ को धागा बांधना इत्यादि कर्म करते हैं । इस तरह से हम प्रभु से दूरी बना लेते हैं ।
                 हमें अपने जीवन के दुखों तथा सम्स्याओं से घबरा कर प्रभु को भुलाकर इन पाखण्डी कर्मकाण्ड जैसी दुविधा में नहीं पड़ना चाहिए और एक परमात्मा की आराधना में विशवास रखना चाहिए ।

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