#गुरु (चैप्टर-2) 10516
मनुष्य तथा जानवर सभी जन्तुओं की श्रेणी में आते हैं । जानवर के बच्चे जन्म के बाद कुछ ही समय में चलने, उठने, बोलने,दौड़ने जैसी सभी किर्याएं शुरू कर लेते हैं । पर मनुष्य का बच्चे को इन सब किर्याओं को करने में वर्षों लग जाते है। इस के विपरीत मनुष्य साईकल, कार, जहाज चलाना सीखने के साथ कोई हुनर जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील की शिक्षा व् अध्यन भी कर लेता है ।
ये सब कैसे ? मनुष्य को इन सब श्रमताओं को जानने के लिए किसी दूसरे का ज्ञान लेना होता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये जो मेहनत है वो उस की अपनी है ।जिससे वह अपने तथा परिवार की रोजी रोटी की व्यवस्था करता है।
इसी तरह हमें जीवन जीने का तरीका, भले बुरे की पहचान, समझ, जो देता है वो गुरु है। जो माता पिता, शिक्षक, के अतिरिक्त जो जीवन जीने का मार्ग दर्शन दे, वो गुरु है ।
जैसे कि हम सब जानते है कि समाज, जिसे पिछले कई वर्षों से कर्मकाण्ड,पाखण्ड, ने जकड़ रखा था । इन अंध विशवास को दूर करने के लिये भी किसी गुरु के मार्ग दर्शन की आवश्यकता थी । गुरु, जो हमें बताया कि भगवान् क्या है? उसका कार्य क्या है? ये जो प्रकर्ति है वो अपने आप कैसे अपना काम कर रही है ? उसे इस अनुशासन में कार्य करने के लिये किसने बाँध रखा है ? भगवान हमसे क्या चाहता है। मनुष्य और जानवर में उपरोक्त जो अंतर है,वे क्यों है ? हमारा आचरण स्वभाव, समझ अलग अलग क्यों है ? इत्यादि कई प्रश्न है जो हमें किसी दूसरे मनुष्य , शास्त्र, धर्म, जो आपको लगता है या आप को सलाह देता है, से ढूंढते हैं । यानी ऐसा कोई माध्यम जो सही और स्थिर जानकारी दे सके ।
हम इसी भगवान् और मनुष्य की मध्यस्ता को ढूंढने के चक्कर में कई बार भटक जाते है । और कोई हमें गलत दिशा में ले जाता है । जो हमें धरती, आसमान, सूरज, किसी की मूरत, या किसी जानवर और इंसान में भगवान् दिखाता है, जबकि ये सब तो स्वंय ही उसके अधीन हैं जो उसके नियम अनुसार अपने अपने कार्य से बंधे हुए हैं।
ऐसे में करीब पन्द्रवी सदी में पृथ्वी पर गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ । जिन्होंने इस संसार वासियों को जीवन, प्रकर्ति, और इस को बनाने वाले के अस्तित्व की जानकारी अपने शब्दों द्वारा दी । गुरु जी ने प्रकति के नियम, और मनुष्य के जीवन यापन की समर्था, मकसद, और मर्यादा के बारे में समझाया । जो मनुष्य के जीवन में सुख दुख आते हैं वो किस वजय से हैं ? और उन्हें अपने कर्म में किये कार्य को सुधार कर कैसे प्रभु के हुक्म में चलना है।
उन्होंने अपने जीवन में शब्दों से, गृहस्थ जीवन को निभाते हुए, रोजी रोटी के लिये काम करते हुए, अनेक यात्राओं से सभी धर्मों के लोगों को, जाति भेद भाव मिटाने, कर्मकाण्ड से दूर रहने, काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार जैसे दुश्मनों का नाश और अपने शरीर की पाँचों इन्द्रियों को नियंत्रण में रखने की सूझ बुझ दी । यही विचारधरा का आगे कैसे विस्तार हुआ, वो कल मैं आपको तीसरे अध्याय में बताने की कोशिश करूँगा ।
ये सब जानकारी जो मैंने एक पुस्तक "सिखी, कल आज कल' से लेकर संक्षेप में लिखी है।
पुस्तक मंगाने के लिये
sikhikalaajkal@gmail.com
Tuesday, 10 May 2016
गुरु कौन है ?
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