Wednesday, 25 May 2016

आनंद की अनुभुति

#आनंद_की_अनुभूति (Chapter-12) 24516
                   मनुष्य का नाच, गाना, मनोरंजन, सुंदरता,सोना-चांदी, बड़ा घर, बढ़िया गाड़ी, जमीन-जेहदाद,धन-सम्पदा,संसार में प्रसिद्धि आदि सभी सुख, रस, आनंद की ओर प्रभावित होना स्वभाविक है । वह अपने को इसी लोभ रूपी लालसा में उलझाए रखता है । जिससे उसके मन में इन सभी सुखों को देने वाले दातार प्रभु का नाम भुल जाता है ।
                       गुरु की शिक्षा समझाती है कि ये सभी 'रस' समय के साथ समाप्त होने वाले हैं । लेकिन प्रभु के नाम का रस जो एक 'आनंद' है, यदि एक बार मन में बस जाए जो सदैव साथ रहता है, तो जीवन में भी प्रभु के जैसे सच्चे गुण पैदा हो सकते हैं । यह गुण उन कच्चे आनंद की तरह समय परिवर्तन के साथ कम नहीं होते, बदलते नहीं और ना ही समाप्त होते हैं । इस आनंद को "गूंगे की मिठाई" की तरह केवल महसूस ही किया जा सकता है ।
               सिख इतिहास गवाह है कि इस सच्चे आनंद की अनुभूति पांचवें गुरु अर्जन देव जी को मुगलों द्वारा गर्म तवे पर बिठाया जाना, नोवें गुरु तेग बहादर जी का सिर धड़ से अलग किया, जाना, दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों को दीवार में चिनवाया जाना, ऐसे ही बहुत से सिखों की कई प्रकार से तकलीफ देकर दी गई शहीदी के समय थी । यह वो सच्चा आनंद है जिसे लिखना और आपके लिये पढना तो सरल है, पर उसका स्वाद वही बता सकते हैं, जन्होंने इसे चखा है फिर भी वो असमर्थ है ।
                 गुरु ग्रन्थ साहिब जी के अनुसार हमें नाशवान पदार्थों से अधिक प्रभु के सच्चे नाम की याद रूपी आनंद की अनुभुति के अहसास के लिये अभ्यास करते रहना चाहिए । जो संसार के विकार, बुराई, कर्मकाण्ड, भर्म, दुविधा,पाखंड तथा नशे को त्याग कर एक प्रभु की याद, गुणगान से संभव है ।

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