कुछ दिन पहले एक खबर सुर्खियों में थी कि 70-75 वर्ष के बुजुर्ग जोड़े के घर बच्चे का जन्म हुआ है । इस जोड़े ने बहुत वर्षों परमात्मा के समक्ष प्रार्थना की, पर मेडिकली रिपोर्ट के अनुसार प्रकृतिक किर्या से यह असम्भव था । आखिरकार वैज्ञानिकों ने उनको सहायता की ।
परमात्मा ने इस जोड़े को बच्चा देना थ या नहीं, यह एक अलग विषय है । पर सोचने वाली बात यह है कि वैज्ञानिकों ने यह करिश्मा करके, मनुष्यता के लिये सुख प्रदान किया है या दुख बढ़ाये है ?
प्रकर्ति का नियम है कि जब बच्चे को सहारे की जरूरत होती है, उस समय माता पिता उसकी सब सहुलतें प्रदान करते हैं । बच्चे ने अभी जन्म ही नहीं लिया होता कि माँ के जरिये उसको दूध का प्रबंध पहले से ही हो जाता है । तथा जब खाने के काबिल होता है तो उसको दांत उपलब्ध हो जाते हैं ।
बुढापे में जब माता पिता को आसरे की जरूरत होती है तो उस वक्त बच्चे बड़े होकर उनकी देखभाल करने के समर्थ हो जाते हैं । पर ईस उम्र में वो अपनी देखभाल करेंगे या अपनी ? इस उम्र में पैदा हुआ बच्चा सेहत से किस पक्ष में तन्दरूस्त रहेगा, यह एक प्रश्न है ।
इस बुजुर्ग औरत का कहना है कि उसको अपना खुद् का बच्चा चाहिए था, क्योंकि वह किसी और क गोदे लिय बच्चे को शयद आवश्यक प्यार नहीं दे सकती थी ।
यह सोचने वाली बात है कि ये जोड़ा और कितने साल बच्चे की देखभाल कर सकेगा ? आखिर तो इन्हें इस बच्चे को किसी और बेगाने हाथों में सौंपना ही पड़ेगा । यदि यह बुजुर्ग किसी और बच्चे को गोद लेकर नहीं पाल सकती तो कोई और क्यों इस बच्चे को भरपूर प्यार देगा इस जोड़े के कहने के मुताबिक़ यह बच्चा हमारी जेहदाद से सम्बन्ध रखता है । उस मुताबिक़ यह बच्चा जन्म से ही प्रॉपर्टी के झमेले में तो नहीं पड़ गया । इस तरह यह बच्चा जिंदगी में कितने सुख मान सकेगा । पर इस वक्त विचार करते यह नजर आता है कि यह प्रकिर्या किसी के हित में नहीं है ।
यदि इस घटना को एक उदहारण के रूप में लें तो धरती के दुखों का जिमेदार मनुष्य स्वंय है ना कि परमात्मा ।
Jasbir Singh Virdi
Monday, 23 May 2016
मानसिक वेदना
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