हम में से हैं कई, विश्वास घात कर, भारत की इज्जत मिलाते हैं मिट्टी।
हम में से है कई, निस्वार्थ भाव से, गरीब की सेवा में उठाते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, निकम्मे व आलसी, सरकारी दफ्तर में लौंदते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, लालची अफसर व नेता, सस्ते मोल बिक जाते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, विकासशील से विकसित नहीं बना पाते माधो के मिट्टी।
हम में से हैं कई, बुरी व अपवित्र विचारों से ग्रस्त, खराब कराते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, असभ्य नेता उटपटांग ब्यान देकर पलीद करते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, देश व धर्म प्रेम में निशावर होकर पार कराते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, महिला व बच्चों का शोषण कर ठिकाने लगाते हैं मिट्टी।
हम में से हैं कई, 'गंभीर' सब कुछ देख समझ कर डाल जाते हैं मिट्टी।
Thursday, 19 May 2016
मिटटी (कविता)
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