Wednesday, 4 May 2016

RTI act.

#RTI act जिससे एक ऐसे आम आदमी को अधिकार मिला जो पहले यह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था कि जिस सरकार को मैं अपनी मेहनत से की हुई आमदनी में से जो हिस्सा टैक्स के रूप मैं दे रहा हूँ वो कहाँ इस्तेमाल हो रहा है । जिसकी जानकारी होनी चाइये, जो उसका हक् है।
मैं चाहता हूँ कि यह कानून हर उन संस्था पर भी लागू होना चाहिये जो या तो प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में ख़ुद सरकार या उससे से जुडी हुई संस्था जैसे NGO, निजी स्कुल आदि। और वो धार्मिक संस्थाए जो हमारें दान (डुनेशन) के रूप में दिए गए पैसे को #सही जगह पर लगाती हैं।
ये बात अलग है क़ि हैं कुछ ऐसी धार्मिक संस्थाए जो इस कानून को लागू करने से कतरा रही हैं । ऐसा क्यों ?
हम अपने धर्म कर्म के लिये जोड़े गए पैसे को इन कारणों से इन संस्थाओं को देते हैं कि एक तो हमारे पास समय नहीं । दूसरा हमें जानकारी नहीं कि किसे, किसलिये क्यों कब तथा कहाँ इस सहायता की जरूरत है। हम अपनी तरफ से यह सोच कर पल्ला झाड़ लेते है कि हमने तो अपना फ़र्ज़ निभा दिया कि जरूरत मंद इंसान जो जाने अनजाने इस कष्ट में है या आ गया है, को इन समाज सेवी या धार्मिक संस्था द्वारा हमारी मदद पहुंच जाएगी।
जबकि यही समाज सेवी संस्था में से कुछ लोग हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठा लेते हैं कि इन्होंने कौन सा हमसे हिसाब माँगना हैं । क्यों ना इन दान पुन्न की हुई मदद को अपने निजी फायदे में लगा दें ।
क्या हम जानते हैं कि हमारी ओर से दी गई इस टेक्स या डुनेशन का अमाउंट कुल मिलाकर करोड़ों तक का हो सकता है। जिसकी हमें कतई चिंता नहीं हैं । जबकि हम अपने दस बीस हज़ार रुपये कहीं रखने हो तो बहुत सोचते हैं कि इन्हें वहां रखें जहां किसी चोर उचके या उठाई गिरे की नज़र ना पड़ जाए जो इस अमाउंट को अपनी ऐशो आराम के लिये इस्तेमाल न करे। और उधर जो मदद हम सब ने मिलकर करोडो में दी है, उसकी पुछताछ भी नहीं करते।
घोटाले होते नहीं, हम खुद इन्हें होने का प्रोहत्सान देते हैं ।
मैं आप से यह बातें इस लिये नहीं कर रहा कि मुझे आपसे अपनी किसी ऐसी संस्था के लिये दान चाहिये। या ना ही इस लिये मैं किसी राजनेतिक पार्टी का कर्ता धर्ता हूँ कि मुझे आपसे वोट चाहिए  बल्कि मैं आपको एक जागरूक नागरिक बनाना चाहता हूँ। जो आप हैं तो पर आपके पास इतना समय नहीं कि जान सकें कि मेरी जो धन राशि है जिसे मैं किसी जरूरतमंद इंसान की मदद में लगा रहा हूँ वो असल में जाती कहाँ है।
इस नज़रिये को आप 'गंभीर'ता से सोचें ।

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