Wednesday, 4 May 2016

अनुवाद ।

हमारे बहुत से धार्मिक नेता गुरु जी की वाणी को सिर्फ और सिर्फ पंजाबी (गुरमुखी) भाषा तक ही सिमित रख इस अमूल्य खज़ाने को दुनिया की अलग अलग भाषाओं में अनुवाद करने के पक्ष में नहीं हैं, वो नहीं चाहते कि जो कुंजी (चाबी) जैसे पंडितों के हाथ से मंदिर की छीन कर दलितों को मिली है वैसे ही कहीं गुरुदवारों की चाबियाँ हर कोई इस गरंथ साहिब को अपनी अपनी भाषा में पढ समझ कर ना छीन लें और उनके द्वारा फैलाए झुठे करमकांड की पोल ना खोल दे.

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