मनुष्य का शरीर पानी की दीवार जैसे है ।
जिसे हवा के स्तम्भ ने सहारा दिया हुआ है ।
खून की बूँद से मसाले (गारे) जैसे चुनाई, लुपाई (पलस्तर) की हुई है ।
हड्डियों,मांस तथा नाड़ियों से ढांचा बनाकर परमात्मा ने इसमें आत्मा रुपी पक्षी का घर बनाया हुआ है ।
यह पक्षी बेशक अंदर वाले कमरे में बैठा है
पर जब यह पक्षी मनुष्य के शरीर से आजाद होता है तो शरीर रुपी यह महल एकदम गिर कर मलवे का ढेर बन जाता है ।
जल की भीत, पवन का खंमा,
रकत बून्द का गारा ।।
हाड,मास, नाड़ी को पिंजर,
पंखी बसै विचारा ।।
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